मैं फ़रमाईश हूँ उसकी, वो इबादत है
मेरी,
इतनी आसानी से कैसे निकाल दूँ उसे अपने दिल से,
मैं ख्वाब हूँ उसका, वो हकीकत है
मेरी।
फिर इश्क़ का जूनून चढ़ रहा है सिर पे,
मयख़ाने से कह दो दरवाज़ा खुला रखे।
क्या जरूरत है मुझे इतर की बदन पर लगाने के लिए,
तेरा ख्याल ही बहुत है मुझे महकाने के लिए।
देखो आपकी आँखों से गुफ्तगू करके साहब,
मेरी आँखों ने भी बोलना सीख लिया।
देख मेरी आँखों में ख्वाब किसके हैं,
दिल में मेरे सुलगते तूफ़ान किसके हैं,
नहीं गुज़रा कोई आज तक इस रास्ते से हो कर,
फिर ये क़दमों के निशान किसके हैं।
लोग पूछते हैं कौन सी दुनिया में जीते हो,
हमने भी कह दिया मोहब्बत में दुनिया कहाँ नजर
आती है।
अकेले हम ही शामिल नहीं हैं इस जुर्म में जनाब,
नजरें जब भी मिली थी मुस्कराये तुम भी थे।
शब्दों को होठों पर रखकर दिल के भेद ना खोलो,
मैं आँखों से सुन सकता हूँ तुम आँखों से बोलो।
यह कौन शरमा रहा है, यूँ फ़ुर्सत में
याद कर के,
कि हिचकियाँ आना तो चाहती हैं, पर
हिच-किचा रही हैं।
जिसका वजूद नहीं, वह हस्ती किस
काम की,
जो मजा न दे, वह मस्ती किस
काम की,
जहाँ दिल न लगे, वो बस्ती किस
काम की,
हम आपको याद न करें, तो फिर ये
मोहब्बत किस काम की।
नकाब तो उनका सिर से लेकर पाँव तक था,
मगर आँखें बता रही थी कि मोहब्बत की शौकीन वो
भी थी।
फ़क़ीर मिज़ाज़ हूँ मैं, अपना अंदाज़ औरों
से जुदा रखता हूँ;
लोग मंदिर मस्जिदों में जाते हैं, मैं
अपने दिल में ख़ुदा रखता हूँ।
कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म-ए-जानाँ,
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे।
माना कि उनमें अलग कुछ भी नहीं है,
मगर जो बात उसमें है किसी और में नही है।
हमने जब कहा नशा शराब का लाजवाब है,
तो उसने अपने होठो से सारे वहम तोड़ दिए।
अदा है, ख्वाब है,
तकसीम
है, तमाशा है,
मेरी इन आँखों में एक शख्स बेतहाशा है।
तू नाराज न रहा कर तुझे वास्ता है खुदा का,
एक तेरा ही चेहरा खुश देख कर तो हम अपना गम
भुलाते हैं।
ये आशिकोँ का शहर है जनाब,
यहाँ सवेरा सूरज से नही, किसी के दीदार
से होता है।
अक्सर नींदें चुरा लेता हूँ देखो रिस्क ही
रिस्क हूँ मैं,
बिन बताये दिल में उतर जाता हूँ इश्क़ ही इश्क़
हूँ मैं।
मैं कुछ कहूँ और तेरा ज़िक्र ना आये,
उफ्फ, ये तो तौहीन होगी, तेरी
चाहत की।
ज़िन्दगी के किस मोड़ पर ले आई है यह जवानी भी,
जलना होगा या डूबना होगा "अक्स" इश्क़
आग भी है और पानी भी।
बेपनाह मोहब्बत का एक ही उसूल है,
मिले या ना मिले तू हर हाल मे कबूल है।
सब पूछते हैं मुझ से क्यों रातों को मैं जागता
हूँ और दिन में खोया हुआ सा रहता हूँ,
चुप रहूँ या कह दूँ अब सब से कि इस बेचैन दिल
की वजह तुम हो।
नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं रात भर,
कसूर तो उस चेहरे का है जो सोने नही देता।
तेरा अक्स गढ़ गया है आँखों में कुछ ऐसा,
सामने खुदा भी हो तो दिखता है हू-ब-हू तुझ
जैसा।
मुझ से रूठकर वो खुश है तो शिकायत ही कैसी,
अब मैं उनको खुश भी ना देखूं तो हमारी मोहब्बत
ही कैसी।
तुझे कोई और भी चाहे इस बात से दिल थोड़ा जलता
है,
पर फखर है मुझे इस बात पर कि हर कोई मेरी पसंद
पे ही मरता है।
हाल तो पूछ लू तेरा पर डरता हूँ आवाज़ से तेरी,
ज़ब ज़ब सुनी है कमबख्त मोहब्बत ही हुई है।
तू होश में थी फिर भी हमें पहचान न पायी,
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